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क़लम के साथ समझौता नहीं , मुझे लिखना है

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Thursday 14 June 2018

कितने अफसानों का उन्वान बना "ईद "का चाँद

 

 चाँद देखने की परम्परा :

इस्लाम धर्म के ग्रन्थों एवं हदीस के अनुसार यह कहा गया है की चाँद देख कर रोज़ा रखो और चाँद देख कर ईद मनाओ , मगर भारत जैसे देश में जहाँ पर एक बड़ी जनसंख्या मुसलमानों की है और मुसलमानों के विभिन्य फिरके के अनुआइयों की बड़ी संख्या मौजूद है,परन्तु हर वर्ष रोज़ा रखने से लेकर ईद मानाने तक कोई न कोई मतभेद अवश्य है की देश के किसी हिस्से में रोज़ा रखा गया और ईद मनाई गई , धार्मिक कुर्सी पर विराजमान आलिमों की टोली के बयानात देख और पढ़ कर प्रति वर्ष देश का मुसलमान कंफियुज़ होजाता है की कौन सी जमात सही है और कौनसी जमात गलत है, किस को फॉलो करें किस को न करें , यह पहेली सुलझने का नाम ही नहीं लेती ,
उधारण के लिए आज ही देख लिया जाये ईमारत शरिया पटना ,जमियत अहल ए हदीस दिल्ली , शाही इमाम दिल्ली ,खानकाह मुजिबिया पटना के साथ और भी कई रोयत हेलाल कमिटी (चाँद देखने वाली समिति ) ने चाँद नहीं देखे जाने की पुष्टि लिखित रूप में सर्वजनिक किया है की कल दिनांक 15. जून को ईद नहीं मनाई जाएगी . वही लखनऊ फिरंगी महली मौलाना राशिदी ने टीवी पर ब्यान दिया की कल ईद होगी इलाहबाद एवं गुजरात के कई स्थान पर चाँद देखने के शाक्ष्य प्राप्त हुए हैं और कल ईद होगी , अब ऐसी परिस्तिथि में मुसलमान किस तरफ जाएँ .

 

खाड़ी देशों में चाँद देखे जाने पर विश्वसनीयता

जिस प्रकार खाड़ी देशों में एक बार चाँद देखने की सुचना लोगों को प्राप्त हुई. बिना प्रश्न उस सुचना पर रोज़ा रखना हो या ईद मनाना हो,विश्वास करलेते हैं मगर यह बीमारी या समस्या केवल भारत में ही हैं ,कभी दक्षिण भारतीय एक दिन पहले ईद मानलेते तो कभी रोज़ा एक दिन पहले से ही रख लेते हैं, वर्षों से चले आरहे इस मतभेद का कोई हल अबतक नहीं निकल पाया की देश के सारे मुसलमान एक साथ एक ही दिन से रोज़ा रखें और साथ में ईद मनाएं .

 क्या कभी भारत में सभी मुसलमान एक ही दिन ईद मना पायेंगे ?

इस चीज़ को यहाँ समझने की आवश्यकता है की क्यों न संपूर्ण भारत के मुसलमानों के सभी फिरके को एक साथ मिला कर चाँद देखने की एक ही कमिटी बनाई जाये जिस की शाखाएं देश के सभी राज्यों में स्थापित की जाए,चाहे रोज़ा रखना हो या ईद मनानी हो एक साथ सभी की सहमती लेकर सर्वजनिक रूप से देश के मुसलमानों को सूचित कीया जाए .क्या ऐसा भारत में संभव हो पायेगा , शायद कभी नहीं क्यों की मुसलमानों में बने हुए 72 फिरके (टुकड़ियों ) एक दुसरे से आगे और स्वय को बड़ा बनने में लगी हैं तो इस जैसे स्न्वेन्द्शील मुद्दे को कौन हल करना चाहेगा शायद नहीं और कभी नहीं . और जब तक यह अम्ल जारी रहेगा देश के मुसलमान अपने को ठगा महसूस करता रहेगा ,

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