वर्ष का शायद ही
कोई ऐसा महिना ,दिन वंचित रह जाता हो जिस दिन कोई न कोई दिवस लोग नहीं मनाते हों ,
अभी हाल ही में पिता दिवस गुज़रा है . दिवस मनाने के साथ साथ क्या हम कोई संकल्प भी
लेते हैं या केवल कुछ लम्हे उन्हें याद कर मोमबत्ती या दीप जला कर कुछ सोशल मीडिया
पर पोस्ट लिख दिया या कोई तस्वीर अपने पिता की टांग कर अपना कर्तव्य पूरा कर लिए .
मित्रों दिवस अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए रहता है जिस में बलिदान ,त्याग
,प्रेम ,यादों का मंज़र लिए हमें चीख चीख कर कहता है की हम भी वैसा कुछ करें ताकि
हम भी इतिहास के पन्नों पर अपना नाम लिखवा सके , परन्तु यह बात सत्य से कोसो दूर
है .
पिता कौन ?
पिता के हवाले
से विश्व भर की पुस्तकालय में मौजूद करोड़ों पुस्तकें पड़ी हुई हैं जिन में पिता के
महत्व और उसके वजूद को समझाया गया है , क्या वर्ष का एक दिन ही उस महान व्यक्ति की
यादों को याद करने के लिए बना है , और फिर अगले वर्ष तक के लिए कलेंडर की तारीखों
में गुम करदेने का नाम पिता है . वह पिता जिस ने अपनी पूरी उम्र ऐसे मजदूर के रूप
में गुज़ारा और उस ने कभी भी यह नहीं सोचा की उस की मजदुरी का फल उस को कब मिलेगा .
और मिलेगा भी या नहीं . खुद सारा दिन दो जून की रोटी की तलाश में मजदूरी करता है
,मगर खुद उस को कभी परिवार के साथ बैठ कर गरम रोटी खाने को नसीब नहीं होती है . सारा
दिन मजदूरी इस कारण करता है की उसकी औलाद सभी तरह के सुख चैन पा सकें . अपनी औलाद
की फरमाइश वाली आँखों की हरकत को भी इतनी जल्दी समझ जाता है जैसे की उस की शिक्षा
उस ने प्राप्त की हो :
समय गुजरता जाता
है और यह मजदूर अपनी उम्र के आखरी पड़ाव में पहुँच जाता है , बुढ़ापा आजाता है और शाररिक रूप से कमजोरी पाँव
की जंजीर बनजाती है . यहाँ अब उसे सहारे की आवश्यकता होती है ,समय के साथ साथ इस
मजदूर के बच्चे भी जवान होगये होते हैं , और
फिर वही इतिहास अपने पिता वाली उसके बच्चे अपने औलादों के लिए दोहरा रहे होते हैं.
समय का सितम
देखिये जिस पिता ने दिन रात एक कर के अपने बच्चों को शिक्षित ,रोज़गार के काबिल
बनाया अब वही पिता के लिए उन के पास समय नहीं रहता है उन के लिए बोझ बनने लगते हैं
. उनकी ज़रूरत को पूरा करने के लिए उन के औलाद के पास समय नहीं रहता है .
जिस औलाद की
फरमाइश पर कभी वह मज्द्रुर फिरकी की तरह नाचता था आज उसको वही बच्चे झटक देते हैं
, तेज़ आवाज़ में बात करते हैं . ज़रा सोचिये ,,, जिस ने अपनी पूरी उमर बिना फायदे की
गवां दी ,.,, आज वह सहारे का मोहताज है . ऐसा क्यों
वह पिता जो कभी
अपने छोटे छोटे बच्चों सलाह को भी महत्व देता था आज वह कोई मशवरा नहीं दे सकता है
. जिस ने अपनी जान को जान न समझ कर अपने बच्चों की ख़ुशी और उन की बेहतर तालीम के
लिए दिन रात एक करदिया . उस को क्या मिला ,
याद रखिये . आप
अभी जवानी की रंगीनी ,बीवी बच्चों की मोहब्बत में अपने उस बुढे पिता को नजर अंदाज़
कर रहे हो . जब यह बुढा पेड़ नहीं रहे गा . तब तुम उस पेड़ की छाव को तरसोगे . और
हथेली मलोगे ,समय दोबारा नहीं मिलेगा और तुम भी धीरे धीरे उसी पड़ाव पर पहुँच जाओगे
.और तुम भी वही दिन देखोगे . जैसा तुम ने अपने बूढ़े ,और असहाय पिता के साथ किया था
,वही ब्योहार तुम्हारे साथ तुम्हारे बच्चे दोहराएंगे . तब तुम को शिद्दत से एहसास
होगा की जैसा व्योहार तुम ने किया था वही तुम्हारे साथ हो रहा है .
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