SANDESH QALAM

क़लम के साथ समझौता नहीं , मुझे लिखना है

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Tuesday 10 April 2018

भरे अपनी मुट्ठी में जो आकाश तारा


लेखन का शौक तो बेहिसाब लोग अपने अंदर पालते हैं , और लेखक बनने का सपना आँखों में बसाकर लिखने का प्रयास भी करते हैं .लेखन एक ऐसी कला है जिस को हर काल में अहम् माना गया है और हर युग में इस कला की सराहना एवं प्रशंसा होती रही है ,एक लेखक अपनी उँगलियों की पकड में कलम को कैद कर शब्दों की जाल से संसार के अनगिनत मुद्दों पर अपनी सोच ,भाव को लेखन के माध्यम से व्यक्त करता है .परन्तु हर लेखक अपनी लेख में किसी न किसी तकनीक का प्रयोग करता है ,जो उस के लेख को विशेष बनाता है , चाहे वो कहानी ,कविता ,ग़ज़ल्स ,गीत कोई भी सहितिय्क विषय को अपना क्षेत्र चुना हो ,आज हम बात कर रहे एक ऐसे युवा लेखक ,कवि की जिस के जूनून ने उसे प्रोफेशनल बना कर एक छोटे से गावं से मुंबई तक पहुंचा दिया :

मंज़र बलियावी कौन ?

उत्तरप्रदेश के जिला बलिया के बेल्थरा रोड के निकट कुंडइल नेमत अली गावं के रहने वाले शिक्षक स्वर्गीय श्री मोहमद दाऊद के पुत्र मंज़र हैं ,मंज़र की पढाई गावं में ही हुयी है, उन्हों ने साहित्य में स्नातक एवं कई अतिररिक्त प्रशिक्षण भी लिया है ,घर परिवार चूँकि शिक्षित था पिता शिक्षक थे और साहित्य में डबल एम्. ए (उर्दू ,अंग्रेजी ) मंज़र अपने पिता को लिखते देख लिखना शुरू किये और बचपन में छोटी छोटी कविता ,कहानी शेर लिखते थे ,बचपन में उनके पिता या कोई और अध्यापक उसे सही कर देते थे यही जज्बा उनके अन्दर खवाब का रूप लेता गया ,मंज़र ने अपने नाम के साथ अब बलिया का नाम जोड़ लिया था और कलमी नाम " मंज़र बलियावी " हो चूका था , गावं शहर की अदबी साहित्यिक सभा एवं गोष्ठियों में उनकी उपस्तिथि होने लगी थी ,गावं से अब जिले तक के साहित्यकारों एवं कवियों ,शायरों में उनकी पहचान होने लगी थी .


मंज़र बलियावी और मुंबई फिल्म नगरी 

जब हम ने मंज़र बलियावी से पूछा की मुंबई फिल्मनगरी में फिल्म राइटर तक के सफ़र की कुछ रुदाद सुनाएँ तो उन्हों ने मुस्कुराते हुए कहा की शमीम कमर रेयाज़ी साहब यह फिल्म नगरी ऐसी दुन्या है जहाँ अपनी परतिभा का दम दिखाना और नाम ,काम पाना आसान नहीं है ,यह सब जानते हैं जब किसी को ब्रेक मिलता है तो लोग अपनी कोशिस और मेहनत को ज़माने के सामने ब्यान करते हैं ,परन्तु मेरा भी मुंबई का सफ़र कुछ ऐसा ही था मगर हम ने ज़यादा भाग दौड़ नहीं की ,यह 1996 की बात है जब हम ने फिल्म राइटर का सपना लिए मुंबई का रुख किया था उस समय थोड़ी उम्र भी कम थी ,अपनी कहानी लिए कागज़ को फोल्ड कर रबर लगाये अक्सर डायरेक्टरस के कार्यालय में घुस जाता था ,और अपनी कहानी को सुनने का आग्रह करता था ,लेकिन मुझे और मेरी आयु को देखते हुए डायरेक्टर्स मुझे गावं जाने की सलाह देते और कहते थे ,पढाई जारी रखो और आगे पढो ,यह सुनकर हमें निराशा नहीं होती थी और हम ने आशा का दामन कभी नहीं छोड़ा यही शायद मेरी सफलता का कारण है .

शिक्षा पथ ने मंज़र को हौसला दिया  


मुबई में रहते हुए अब मुंबई की आदत सी पड़ गई थी ,मुंबई में लोग कब सोते हैं कब जागते हैं पता ही नहीं चलता था ,हर तरफ शोर लिए लोकल ट्रेन हो या सरकारी बसों की आवाज़ के साथ निजी वाह्नोंओ की सीटियाँ अब मुझे परीशान नहीं करती थीं .मै भी दिन में किसी डायरेक्टर्स से मिलता और रात को कवी गोष्टी ,मुशायरा अदि में भाग लेता था , धीरे धीरे यह जिंदगी नइ मोड़ ले रही थी शायद फ़िल्मी जगत मेरा प्रतीक्षा कर रही हो,मेरे साहसी पग अपनी मजिल की ओर बढ़ते रहे . 
उसी बीच हमारी एक पुस्तक "शिक्षा पथ " का लोकार्पण हुआ ,उसके माध्यम से कुछ और फिल्मनगरी से जुड़े कुछ लोगों के संपर्क में आया ,उस में फिल्म" तिश्नगी " के डायरेक्टर समीर खान से जान पहचान बढ़ी और हम एक दुसरे के करीब होते गए ,एक दुसरे के घर आना जाना लगा रहा एक दिन हम ने " Tishnagi" की कहानी समीर खान साहब को सुनाई ,कहानी का प्लाट ,स्क्रिप्ट उन्हें पसंद आई और तुरंत ही उन्हों ने कहा की dialog लिखने की तयारी कीजिये मंज़र भाई हम इस पर फिल्म बनायेंगे ,हमारी ख़ुशी की इन्तहा नहीं थी ,हम ने संवाद भी लिखे ,और फिल्म की शूटिंग शुरू हुई ,यह इत्तेफाक कहिये या कुदरत का करिश्मा फिल्म के गीत भी मुझ से लिखने को कहा गया ,हम ने गीत भी लिखे ,यह फिल्म अब बन कर रिलीज़ के लिए तैयार है अगले महीने 4 मई को रिलीज़ हो रही है .

मंज़र बलियावी का सन्देश  एवं शायरी :

मंज़र बलियावी ने अंत में कहा की संघर्ष करनी चाहिए और कोशिस करने वालों की हार नहीं होती है ,बस सच्ची लगन और अपने लक्ष्य को पाने के लिए दिल में जिद और दीवानगी होनी चाहिए ,ब्लॉगर शमीम कमर रेयाज़ी ने उन से कुछ कविताओं की पंक्तिया एवं ग़ज़ल के शेर सुनाने की फरमाईश की तो मंज़र बलियावी ने कई पंक्तियाँ ,बंद सुनाई जिस में से कुछ आपकी सेवा में प्रस्तुत है , 

यक़ीनन मंजिल ए मकसूद पर पहुंचूंगा मैं एक दिन 
मुझे बस आप लोगों की दुआओं की ज़रूरत है :

छावं तहजीब की एक लम्हा मयस्सर न हुई 
काफ्ला यूँ तो कई बार शज़र से गुज़रा :

भरे अपनी मुट्ठी में आकाश तारा 
उसे ही मिला है धरा पर सहारा :
मंज़र बलियावी की आगामी प्रोजेक्ट एक और प्रेम कहानी पर आधारित हिंदी फिल्म आरही है जिस की पटकथा मंज़र बलियावी ने लिखी है (रूहानियत ) तिश्नगी के रिलीज़ के बाद शूटिंग शुरू हो रही है ........
अब दीजिये इजाज़त फिर मिलेंगे किसी और लेख के साथ आप को मेरा लेख कैसा लगा अपनी राय ज़रूर दें.
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