SANDESH QALAM

क़लम के साथ समझौता नहीं , मुझे लिखना है

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Friday 13 April 2018

कब तलक लुटती रहेंगी बेटियों की आबरू ?

 आसिफा  :  आसिफा  :  आसिफा  :  आसिफा

कश्मीर में 8 वर्ष की मासूम फूल सी बच्ची के साथ जिस प्रकार हैवानियत का खेल दरिंदों ने खेला है उसे सुन कर रूह तक काँप जाती है । इन बलात्कारी शैतानों का वहशीपन से दिल खून के आंसू रोने पर मजबूर है । कसूर क्या था इस छोटी सी मासूम बच्ची का यही की वह बंजारा या गरीब परिवार से थी ,या यह की वह भी इस आदमखोर इंसानों की बस्ती में अपनी ज़िन्दगी जीने की कोशिश कर रही थी,वैसे हम ने देश के कई ज्वलनशील मुद्दों पर सैकड़ों लेख लिखे हैं मगर आज मुझे शब्द"आसिफा" लिखते उँगलियों में कंपन और कलम थर्रा रहा है । इतनी हिम्मत नहीं होरही की आगे कुछ लिखूं । 

क्या लिखूं  तुम्हारे बारे में ?

 
क्या लिखूं की उन जानवरों ने आसिफा को अगवा कैसे किया ? क्या लिखूं की उस मासूम को भूखे नंगे किस प्रकार कैद कर रखे थे ? उन दरिंदों ने आसिफा के साथ कई दिन तक सामूहिक बलात्कार किया ? क्या लिखूं की 8 साल की मासूम सी फूल को नशे की दवाइयाँ देकर उसके साथ हैवानियत का नंगा नाच किया ? क्या लिखूं की भगवान स्थान एवं मन्दिर जैसे पवित्र स्थान को इन कुकर्मियों ने नापाक कर दिया ? क्या लिखूं की लगातार कई दिनों तक नन्ही सी जान के जिस्म को नोचने के बाद उसको पत्थर से सर पर वार कर उसकी चीख को गला दबा कर हमेशा के बन्द करदिया गया ? क्या लिखूं की बलात्कारियों की उम्र क्या रही होगी ? क्या लिखूं की बलात्कारियों में रेवेन्यू का रिटायर्ड ऑफिसर के साथ देश की पुलिस भी थी ? क्या लिखूं की चाचा के साथ भतीजा भी था ? क्या लिखूं की मानवता को शर्मसार करदेने वाले हरामियों के पक्ष में भक्तों की एक जमात प्रदर्शन कर रही है ? क्या लिखूं की बलात्कारियों को बचाने के लिए भगवान् श्री राम से लेकर भारतीय ध्वज का भी मज़ाक उड़ाया जा रहा है ? क्या लिखूं की अदालत में केस लड़ने वाले वकीलों का समूह बलात्कारियों के समर्थन में मार्च कर रहा है ? क्या लिखूं की आसिफा के वकील को सरे आम धमकियां केस छोड़देने की मिल रही है ?
 

 हम पूछना चाहते हैं कई सवाल : क्या दे पायेगा हमारा मुर्दा समाज

ऐसे अनगिनत हज़ारों प्रश्न हैं जिसका उत्तर देश के मुखिया से लेकर देश में सामाजिक संस्थानों ,महिला आयोग से लेकर बिभिन्य प्रकार के धार्मिक सेना से पूछना है । आज जुबां पर ताले क्यों पड़े हैं , कभी निर्भया कांड में पूरी दिल्ली हिला रहे थे । आज क्या हुआ है ,कभी पद्मावती के लिए पूरा भारत सर पर उठा लिया जाता है। आज आसिफा की चीख और शारीरिक पीढ़ा क्यों महसूस नहीं हो रही है ? आज उस गरीब कमज़ोर मृत्य मासूम की माँ के आंसूओं की बरसात से हमारा दिल नहीं पसीजता है । याद रखिये ज़ुल्म देखकर खामोश रहना भी ज़ालिमों का समर्थन है। जब बेटी रहेगी ही नहीं तो उन्हें बचाया और पढ़ाया कैसे जाएगा। भारत के मृत्य समाज में इंसानियत तो मर ही चुकी है ,ज़ख़्मी दिलों की आह से आसमान का अर्श भी हिल जाता है तो उस मासूम आसिफा की मृत्य शारीर एवं चीख से सत्ता के लोभी कुर्सी के दलाल भी ज़रूर नेस्तोनाबूद होंगे। इस समय समूचे देश को एकजुट होने की आवश्यकता है ,धर्म एवं जाती से ऊपर उठकर भारतीय सभ्य नागरिक का सबूत देकर भारत की न्यायिक व्यवस्था पर दबाव बनाना हमारा कर्तब्य है। ताकि बलात्कारियों को स्पीडी ट्रायल के साथ कम से कम समय में आरोपियों को फांसी पर लटकाई जाए ताकि दूसरा कोई भी शैतान किसी भी बेटी की ओर बुरी नज़र डालने से पहले हज़ार बार सोचे और बलात्कार जैसे घटना के अंजाम से आरोपी की रूह काँप जाए । तब जाकर हमारे देश की बेटियां ,माँ,बहन सुरक्षित रहेंगी । वरना इतिहास गवाह है जहाँ पर भी इस प्रकार के ज़ुल्म,ज़्यादती की हदें पार हुई हैं वहां देर से ही सही "इनकलाब" आया है और इंकलाब ने सब कुछ बदल कर रखदिया है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं,यह केवल लेख नहीं है एक लेखक के दिल से निकली हुयी वह आह है , असीफा की चीख और पीढा को महसूस करते हुए अपनी जुबा को लेख का माध्यम बना कर समाज को एक सन्देश देने की कोशिस है ......
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1 comment:

  1. Ye sab padh ke aatma dukhi hai ke hum iss kalyug ke kis mod par pahunch gaye ki ab insaan insaan nahi balki uski jaati prajaati nazar aati hai. Aur janwaron ke tarah hum ghinaune kaam anzaam de rahe hain.

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