SANDESH QALAM

क़लम के साथ समझौता नहीं , मुझे लिखना है

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Wednesday 4 April 2018

आखिर क्यों प्रदर्शन हिंसात्मक होजाता है ?

भारत में आन्दोलन ,प्रदर्शन ,प्रोटेस्ट 

बेतिया 
हमारे देश भारत में आये दिन कहीं न कहीं प्रदर्शन ,आन्दोलन ,अनशन ,भूक हड़ताल यह मामूली बात है .और सरकार को भी इस बाबत एहसास है की धरना पर बैठे समूहों से कुछ होने जाने वाला नहीं है .इसी कारण इन सारे मुद्दों पर आक्रोशित जनता की हित को भी ठन्डे बसते में डाल दिया जाता है .जब आन्दोलन कारियों का उग्र बढ़ता है और हिंसा पर उतारू होते हैं तो प्रशासनिक कार्यवाही अमल में आती है .फिर क्या पुलिस की लाठी ,डंडों की मार हो या पानी एवं आंसू गैस की बौछार हो सहना पड़ता है .कुछ प्रदर्शनकारी अस्पताल का मुह देखते हैं वही कुछ बे मौत अपनी जान गवां देते हैं .

अधिकार 

जनतंत्र में प्रोटेस्ट करने का अधिकार सब को है, अपने हक़ की खातिर आप आन्दोलन कीजिये ,सरकार के सामने अपनी जाएज़ मांगों को रखिये ,परन्तु इन सब चीजों का एक तरीका है शांतिपूर्ण ढंग से पर्दर्शन होनी चाहिए ,यह नही की अपनी मांगों के लिए सरकारी या गैर सरकारी संपतियों का नुकसान कीजिये ,स्टेशन ,अस्पताल ,बस स्टेंड ,पब्लिक प्लेस पे खड़ी वाहनों को आग के हवाले करदें .यातायात बाधित कर आवागमन ठप करदिया जाए ,इस हिंसात्मक कार्यवाही में यह सोचनीय चीज़ है की नुक्सान किसको सहना पड़ता है .रेलवे स्टेशन पर तांडव से आम जनता को परिशानी है ,रोड पर बस एवं निजी वाह्नों की आवागमन बाधित करके सरकार का काया नुकसान है .

प्रोटेस्ट का प्रारूप और सरकार 

बीते दिन भारत बंद का आह्वान हुआ और जिस परकार आगज़नी ,तोड़ फोड़ किया गया ,संपतियों को नुकसान हुवा उस से क्या मिला ? यह बंद का असर हम ने अपनी आँखों से गांधी जी की कर्मभूमि चंपारण के बेतिया में देखी ,रेलवे स्टेशन से लेकर पेट्रोलपम्प ,निजी एवं सरकारी संपतियों का नुकसान ,लुट मार ,दुकानों में आगज़नी यह किस परकार की मांग है .इस का मतलब यह है की आप इन प्रदर्शन से अपनी शक्ति का पर्दर्शन कर रहे हैं .और यह उक्त बातें सरकार जानती हैं या प्रशासनिक अधिकारीयों को भी मालुम है .इस की नीव कहाँ है और यह शांतिपूर्ण पर्दर्शन एक दम अचानक से हिंसात्मक रूप धारण कैसे कर लेता है .इन सारे परकरण में खेल वोटों का है. विपक्ष दल हो या सत्ताधारी पार्टियाँ मूक दर्शक बनी रहती हैं ,कहीं उनका वोट बैंक ख़त्म न होजाए और समय समय पर आग में घी डालने का कार्य करने से नहीं चुकती है .

अभी की ताज़ा कई हालिया घटनाओं को देख कर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है की आज हमारा देश प्रदर्शन ,प्रोटेस्ट के नाम पर ऐसे लोगों के हाथों में आजाता है जो खुले आम सड़कों पर मौत का नंगा नाच हो या संपतियों का नुकसान हो करने पर उतारू होजाते हैं .ऐसी शर्मनाक और निंदनीय कार्य से निपटने के लिए सरकार के पास कोई व्यापक कदम या प्लान दिखाई नहीं देता .इस में भारत की न्याय किर्या का भी दोष है, की प्रशासनिक पहल पर लोगों को चिन्हित करना फिर उन पर कार्यवाही कर दोषी साबित करना .परन्तु हमारे देश की कानून में जब तक व्यक्ति कसूरवार साबित न हो सजा का प्रावधान ही नहीं है .उस समय तक हमारे न्याय पालिका में केस चलता रहेगा जब तक आप अपनी जिंदगी का आखरी पड़ाव भी काट लेंगे ,कभी कभी तो दोषित व्यक्ति की मृत्यु तक भी कोई फैसला नहीं आ पाता है और वह परलोक सिधार जाता है .इसी कारण दोषी व्यक्ति या समूह को मालूम है की उस पर केस चलेगा और तारिख पर तारीख मिलती रहेगी .


दोषी कौन है ?

भारत देश में और भारत के कानून व्यवस्था में शंसोधन की ख़बरें आती रहती हैं परन्तु सत्ता पर बैठे अपराधी छवि के मालिक स्वयं नहीं चाहते की कोई ऐसी विधेयक पारित हो जिस से इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों पर शिग्र ट्रायल कर के अपराधी पर तुरंत कार्यवाही की जाए. और शायद हमारे इस देश में यह संभव नहीं , तो इसी प्रकार ऐसे ही देश में घटनाये होती रहेंगी देश जलता रहेगा ,लोग मरते रहेंगे ,संपतियों का नुकसान होता रहेगा ,और भारतीय सरकार और देश की न्यायपालिका मोन मुद्रा में मूक दर्शक बनी रहेगी ..... जय हिन्द दोस्तों 

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