आज मेरी आँखों से श्री रविश कुमार का लिखा एक ब्लॉग गुज़रा और चूँकि रविश जी का लिखा मैं पढता हूँ मुझे उनकी लेख में बहुत हद तक सचाईयाँ और उनके द्रारा दिया गया तर्क सटीक होता है , रविश कुमार का प्राइम टाइम भी अपने आप में और दीगर टीवी चैनलों के मुकाबले सच को दर्शाता है ,रवीश जी ने लिखा है की हम कभी यह सोचते हैं की हर सप्ताह कोई न कोई मुद्दा ऐसा टीवी पर बहस का कारण बनता है जिस मुद्दे में राष्ट्रवादी होने की चर्चा पुरे देश में आग की तरह फ़ैल जाती है - टीवी पर जब भी डीबेट का दौर शुरू होता है ऐसा लगता है युद्ध का मैदान हो, हर दल के नेता या प्रवक्ता अपनी झूटी और सस्ती लोकप्रियता को अपने नाम करने के चक्कर में कभी कभी ऐसे ऐसे अशब्द का प्रयोग करते हैं जहाँ भारतीय संस्कृति पर भी सवालिया अंकुश लगने का एहसास होता है ,और टीवी चैनल वालों को भी इसी तरह के मुद्दे चाहिए,जिस से चैनल का टी आर पी बढे और उस से एक मोटी रकम की उगाही हो सके .मै' एक मामूली सा लेखक हूँ जब भी मेरे हाथों में कलम आता है और जैसे मेरी उँगलियाँ कलम को अपनी गिरफ्त में लेती है , तो मैं बहुत देर तक सोचता हूँ की कोई भी लेख कहाँ से शुरू करू कहाँ पर ख़तम और लेखनी के दरम्यान कलम के साथ इंसाफ का दामन भी थामे रहूँ , मैं अपनी प्रतिबधता पर अमल दरामद कर छोटे छोटे लेख के माध्यम से अपने चाहने वालों को एक संदेश देता हूँ . समाज में पनपते ,जन्म लेते कोई भी ऐसा मुद्दा देखता हूँ चाहे वह मुझे निजी तौर पर प्रभावित करे या न करे उसे अपनी लेख का विषय बनाकर लिखना मुझे अच्छा लगता है , बाकी अपने चाहने वालों से प्यार की अपेक्षा होती है और हो भी क्यों नहीं बरसों से आप सभी दोस्तों का प्रेम साथ रहा है तो ज़ाहिर सी बात है मुझे उस की आशा और प्रतीक्षा होनी चाहिए ......... हम खामोश नहीं रह सकते अगर खामोश होता हूँ तो मेरा ज़मीर कोसता है और एक बेबसी सी होती है की मैं किसी मुद्दा का फ़साना छेड़ कर कोई सन्देश आप तक भेज न सका ///////
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